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इतना क्यूँ तू मिमियाता है? / राम मेश्राम
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इतना क्यूँ तू मिमियाता है?
तू तो आदम का बच्चा है
भाग्य-लक्ष्मी दासी जिसकी
तू भी तो उसका चमचा है
मेरा बातूनी मन मुझसे
हर-हर लम्हा बतियाता है
दिल का कुआँ सदा देते ही
जीवन-सरगम घुन्नाता है
राजनीति का डॉन हमेशा
लोकतंत्र को गरियाता है
आला अफ़सर रोज़ धड़ाधड़
कविता पर कविता लिखता है
राजनीति का भूत, न पूछो
मार-मार कर सहलाता है
तेरे-मेरे सबके भीतर
एक नदी है, वह कविता है
गाता जा रे, मत घबरा रे
भीड़ बहुत है, तू तनहा है