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इन्कलाब लानेॅ देॅ / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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बंद करोॅ, अलसैलोॅ जुआनी रोॅ ई खुमारी
हमरा क्रांति के शंख फूकेॅ देॅ
व्यर्थ छै सब टा बीतला दिनोॅ के कहानी
हमरा नया निरमान के रसता बनावेॅ देॅ।

फिकर नै तोरा अच्छा लगै छौं कि बुरा
आकि कहोॅ तोंय, हमरोॅ ताल ही छै बेसुरा
मतुर जिद भरलोॅ धुन हमरोॅ, पक्का लगन छै
हमरा नीन्द में जे सुतलोॅ छै, ओकरा जगावै देॅ।

दुख-दर्द में ई डूबलोॅ कहोॅ के छेकै
ई डरोॅ सें रूकलोॅ, जे नै बढ़ै छै, के छेकै ?
हँसै लै चाहियोॅ केॅ, जे नै हँसै छै, के छेकै,
हमरा एैन्हां लोगोॅ के लोर पोछी केॅ आवेॅ देॅ।

नै रोकोॅ हमरा भीतर उठलोॅ तूफान केॅ
सुती केॅ जागलोॅ भगवान के ईमान केॅ
युग-युग सें दबलोॅ-चपलोॅ आगिन में
हमरा फेरू-फेरू सें आग लगावेॅ देॅ।

बंद छै कैन्हेॅ कहोॅ ऊ आग भरलोॅ तान
गेलै कहाँ चक्का सुदर्शन कृष्ण केरोॅ आन
बिजली पटरी पर गाना छै, मेघ गर्जन गान
फाड़ी सरंग के घना कुहरा, जागरण गीत गावेॅ देॅ।

भीषण अंधड़ आवी रहलोॅ छै
घनघोर घटा सरंगोॅ में छैलोॅ छै
ठहरी केॅ सुनी लेॅ ई शंखनाद
छै विमल संकल्प हमरोॅ, इन्कलाब लानेॅ देॅ।