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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>इन्तेज़मात नये सिरे से सम्भाले जायें|
जितने कमज़र्फ़ हैं मेहफ़िल महफ़िल से निकाले जायें|
मेरा घर आग की लपटों में छुपा ही है लेकिन,
जब मज़ा है तेरे आँगन में उजाले जायें|
ग़म सलामत है तो पीते ही रहेंगे लेकिन,
पेहले पहले मैख़ाने की हालत सम्भाले जायें|
ख़ाली वक़्तों में कहीं बैठ के रोलें यारो,
फ़ुर्सतें हैं तो समन्दर ही खन्गाले खगांले जायें|
ख़ाक में यूँ न मिला ज़ब्त की तौहीन न कर,
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