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इन खुली आँखों से दहशत का नज़ारा देखना / अमित शर्मा 'मीत'

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इन खुली आँखों से दहशत का नज़ारा देखना
जो हमारा है उसे औरों का होता देखना

रूबरू उसको नज़र भर देख भी सकते नहीं
हाय! कितना दुख भरा है ख़ुद को ऐसा देखना

क्या अजब-सा रोग बीनाई को मेरी लग गया
हर किसी चेहरे में बस उसका ही चेहरा देखना

इश्क़ में पथरा चुकी आँखों से है मुश्किल बहुत
चाँद को ठहरे हुए पानी में चलता देखना

हाय! क्या मंज़रकशी उभरी है उस तस्वीर में
रोती आँखों से किसी प्यासे का दरिया देखना

रात भर बेचैनियाँ सोने नहीं देतीं मुझे
और दिन भर रात के होने का रस्ता देखना

मौत हमसे दो क़दम के फ़ासले पर है खड़ी
अब बहुत दिलचस्प होगा ये तमाशा देखना