भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इश्क़ को बे-नक़ाब होना था / जिगर मुरादाबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जिगर मुरादाबादी }}<poem> Category:ग़ज़ल इश्क़ को बे-नक़ा...)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=जिगर मुरादाबादी
 
|रचनाकार=जिगर मुरादाबादी
}}<poem>
+
}}
 +
 
 +
<poem>
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
इश्क़ को बे-नक़ाब होना था  
 
इश्क़ को बे-नक़ाब होना था  
पंक्ति 10: पंक्ति 12:
 
हाँ मुझी को ख़राब होना था  
 
हाँ मुझी को ख़राब होना था  
  
दिल कि जिस पर हैं नक़्श-ए-रन्गा-रंग
+
दिल कि जिस पर हैं नक़्श-ए-रंगारंग
 
उस को सादा किताब होना था  
 
उस को सादा किताब होना था  
  
हमने नाकामियों को ढूँड लिया  
+
हमने नाकामियों को ढूँढ लिया  
आ ख़िरश कामयाब होना था
+
आख़िर इश्क कामयाब होना था

00:32, 3 मई 2009 के समय का अवतरण


इश्क़ को बे-नक़ाब होना था
आप अपना जवाब होना था

तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं
हाँ मुझी को ख़राब होना था

दिल कि जिस पर हैं नक़्श-ए-रंगारंग
उस को सादा किताब होना था

हमने नाकामियों को ढूँढ लिया
आख़िर इश्क कामयाब होना था