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"इस गृहस्थी में यही है साधना, आराधना / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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इस गृहस्थी में यही है साधना, आराधना।
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इस गृहस्थी में यही है साधना, आराधना
 
कुछ मिलन की कल्पना है, कुछ विरह की कामना।
 
कुछ मिलन की कल्पना है, कुछ विरह की कामना।
  
हम न शीशा हैं, न पत्थर हैं, न कोई शूल हैं,
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हम न शीशा हैं, न पत्थर हैं, न कोई शूल हैं
 
आदमी हैं हम, हमारी शक्ति कोमल भावना।
 
आदमी हैं हम, हमारी शक्ति कोमल भावना।
  
प्राण से अपने अधिक हैं मान देते प्यार को,
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प्राण से अपने अधिक हैं मान देते प्यार को
 
जिंदगी से ख़ूबसूरत है किसी का चाहना।
 
जिंदगी से ख़ूबसूरत है किसी का चाहना।
  
किस तरह सुन्दर, सरस, रोचक जहां उसने रचा,
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किस तरह सुन्दर, सरस, रोचक जहां उसने रचा
 
है सृजन जिसके शिखर पर, मूल में है वासना।
 
है सृजन जिसके शिखर पर, मूल में है वासना।
  
पा लिया कुछ हँस लिया, कुछ खो गया कुछ रो लिया,
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पा लिया कुछ हँस लिया, कुछ खो गया कुछ रो लिया
 
फिर नयी माटी जुटायी, फिर नया बरतन बना।
 
फिर नयी माटी जुटायी, फिर नया बरतन बना।
 
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16:29, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

इस गृहस्थी में यही है साधना, आराधना
कुछ मिलन की कल्पना है, कुछ विरह की कामना।

हम न शीशा हैं, न पत्थर हैं, न कोई शूल हैं
आदमी हैं हम, हमारी शक्ति कोमल भावना।

प्राण से अपने अधिक हैं मान देते प्यार को
जिंदगी से ख़ूबसूरत है किसी का चाहना।

किस तरह सुन्दर, सरस, रोचक जहां उसने रचा
है सृजन जिसके शिखर पर, मूल में है वासना।

पा लिया कुछ हँस लिया, कुछ खो गया कुछ रो लिया
फिर नयी माटी जुटायी, फिर नया बरतन बना।