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इस शहर में / हूबनाथ पांडेय

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अब
इस शहर में कोई
भूखा नहीं सोएगा
सबको मिलेगी
दो वक्त की रोटी
सिर पर छत
हाथों को रोजगार
ऑंखों को सपने
साफ-सुथरी सड़कों पर
हवा से बातें करेंगी गाड़ियॉं
फ्लाइओवर ब्रिज जोड़ेंगे
शहर के एक छोर को दूसरे से
धरती, आसमान, पानी पर दौड़ेंगी कारें
मिनटों में पहुॅंचेंगे
एक सिरे से दूसरे तक
अस्पताल होंगे सुसज्जित, सुविधा संपन्न
स्कूल गोलमटोल स्वस्थ बच्चों से भरेपूरे
बगीचे फूलों से खिलखिलाते
तालाब कमलों से गदराए
फुटपाथ भिखारियों से खाली
रेलवे स्टेशन चमचमाते
बस अड्डे जगमगाते
सुंदरियां बाज़ारों में इठलाती
बालाएं रैम्प पर बलखाती
गलियां कुत्तों-गायों से मुक्त
मंदिर-मस्जिद भक्तों से भरे
भक्त भक्तिभाव से भरे
बैंक धन से भरे
सेंसेक्स अंकों से भरे
कहीं भी
अभव, गंदगी, विपन्नता का
नामोनिशान नहीं
यह बीसवीं सदी का
सड़ा गला शहर नहीं
इक्कीवीं सदी का
ग्लोबलाइज़्ड शहर है
अब
इस शहर में
कोई भूखा
नहीं सोएगा
क्योंकि भुखों के लिए
इस शहर के बाहर
एक दूसरा शहर
बसाया जा रहा है
वैसे भी
भूखों को नींद कहॉं आती है