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ई बदरी छाई कबले / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

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ई बदरी छाई कबले
सूरूज छिप पाई कबले

लाठी के बल पर केहू
अनकर हक खाई कबले

बनल रही एह धरती पर
पर्वत आ खाई कबले

अपने घर हिन्दी माई
बनल रही दाई कबले

खून सहोदर भाई के
पियत रही भाई कबले