भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उजड़ी रात का जुगनू / वैशाली थापा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कराहती, पथराई
भीगी हुयी दर्द में
इंतज़ार में डूबी हुयी
सहमी हुई डर से
उदासीनता से बंजर
बन्धनों के अतिरेक से बोझल
जीवनयात्रा से थकी हुई
मौत से भरी हुई

रात तुम उतरना
धीरे-धीरे ही सही
हर उजड़ी हुयी आँख में
हर आँख को नसीब हो
उसके हिस्से की नींद
इतना ख़्याल रखना।