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"उजला थान/ ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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समझी थी सहेली
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क्यों बनी है पहेली ?
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सीपियाँ तो हैं कम ।
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किसी को भी न भाए
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कोई न संग, साथ
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ग़म ही थे अपने ।
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छूकर गया
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अभी मेरे मन को
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है आस-पास
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निर्मल झकोरे सा
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तेरा रिश्ता ये ख़ास।
  
 
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16:38, 7 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

1
उजला थान
उसमें से मुझको
मिला रुमाल
रखा मैंने निर्मल
जतन से सँभाल ।
2
उगा पड़ा है
आवाजों का जंगल
तन्हा खड़ी मैं
गा लेती संग में ,क्यों-
अनमनी बड़ी मैं ?
3
खूब लुभाते
गुनगुन करते
रस के लोभी
झूमती कलिकाएँ
खिल-खिल मुस्काएँ ।
4
चुरा ले गई
फूलों के दामन से
खुशबू हवा
समझी थी सहेली
क्यों बनी है पहेली ?
5
रेतीले तट
सागर से बिछुड़ी
लहरें गुम
पत्थर ज़्यादा लाईं
सीपियाँ तो हैं कम ।
6
पीले फूलों में
अजब-गजब सा
खड़ा बिजूका
किसी को भी न भाए
मन में पछताए ।
7
मीठी ख़ुमारी
सोए रहे सपने
आँख खुली तो
कोई न संग, साथ
ग़म ही थे अपने ।
8
छूकर गया
अभी मेरे मन को
है आस-पास
निर्मल झकोरे सा
तेरा रिश्ता ये ख़ास।