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"उजाड़ बन के कुछ आसार से चमन में मिले / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

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वो पेंचो-ताब तेरी ज़ुल्फ़े-पुर्शिकन के मिले।
 
वो पेंचो-ताब तेरी ज़ुल्फ़े-पुर्शिकन के मिले।
  
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नज़र से मतला - ए - अनवार हो गयी हस्ती
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कि आफ़ताब मिला मुझको, इस किरन के मिले।
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हर-एक नक़्शे - निगारीं, हर-एक निक्‍हतो - रंग
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लक़ा - ए - नाज़<ref>देखने लायक, महबूब</ref> में जल्वे चमन-चमन के मिले।
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मिज़ाजे-हुस्न चलो ऐतदाल<ref>संतुलन</ref> पर आया
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जो रोज़ रूठ के मिलते थे, आज मन के मिले।
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इसी से इश्क़ की नीयत भी हो गयी मशक़ूक
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गवाँ दिये कई मौके, जो हुस्नेजन के मिले।
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अदा में खिंचती थी तस्वीर कृष्नो-राधा की
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निगाह में कई अफ़्साने नल-दमन के मिले।
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कई सुबूत तेरी ख़ूबी-ए-बदन के मिले।
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निसारे-कज़कुलही, शोख़ी -ए- बहारे - चमन
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गुर इस अदा से शगूफ़ों को बाँकपन के मिले
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हयात वो निगहे-शर्मगीं जिसे बाँटे
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वही शराब जो तेरी मिज़ह से छन के मिले।
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ख़ुदा गवाह कि हर - दौरे - जिन्दगी में ’फ़िराक़’
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नये पयामे-गुनह मुझको अह्रमन के मिले।
  
 
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22:52, 9 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

उजाड़ बन में कुछ आसार से चमन के मिले
दिले-ख़राब से वो अपकी याद बन के मिले।

हर-इक मशामाम<ref>श्रवण शक्ति</ref> में आलम है युसुफ़िस्ताँ का
परखने वाले तो कुछ बू-ए-पैरहन के मिले

थी एक बू-ए-परेशाँ भी दिल के सहरा में
निशाने - पा भी किसी आहू-ए-ख़ुतन<ref>ख़ुतन की हिरन</ref> के मिले।

अजीब राज है तनहाई-ए-दिले-शाएर
कि खिलवतों<ref>एकान्त</ref> में भी आसार अन्जुमन के मिले।

वो हुस्नो-इश्क़ जो सुब्‍हे-अज़ल से बिछड़े थे
मिले हैं वदी-ए-ग़ुर्बत मएं फिर वतन के मिले।

कुछ अहले-बज़्मे-सुख़न समझे, कुछ नहीं समझे
बशक्ले-शोहरते-मुबहम, सिले सुख़न के मिले।

था जुर्‌आ-जुर्‌आ<ref>घूँट-घूँट</ref> नयी ज़िन्दगी का इक पैग़ाम
जो चन्द जाम किसी बादा-ए-कुहन के मिले।
 
बज़ोरे - तबा हर इक तीर को कमान किया
हुये हैं झुक के वो रुख़्सत, जो मुझसे तन के मिले।

कमन्दे-फ़िक्रे - रसा में हरीफ़ मान गये
वो पेंचो-ताब तेरी ज़ुल्फ़े-पुर्शिकन के मिले।

नज़र से मतला - ए - अनवार हो गयी हस्ती
कि आफ़ताब मिला मुझको, इस किरन के मिले।

हर-एक नक़्शे - निगारीं, हर-एक निक्‍हतो - रंग
लक़ा - ए - नाज़<ref>देखने लायक, महबूब</ref> में जल्वे चमन-चमन के मिले।

मिज़ाजे-हुस्न चलो ऐतदाल<ref>संतुलन</ref> पर आया
जो रोज़ रूठ के मिलते थे, आज मन के मिले।

अरे इसी से तो जलते है शादकामे - हयात<ref>सुखी जीवन वाले</ref>
कि अह्ले - दिल को ख़ज़ाने-ग़मो-मेहन<ref>दुखदर्द</ref> के मिले।

इसी से इश्क़ की नीयत भी हो गयी मशक़ूक
गवाँ दिये कई मौके, जो हुस्नेजन के मिले।

अदा में खिंचती थी तस्वीर कृष्नो-राधा की
निगाह में कई अफ़्साने नल-दमन के मिले।

हवासे-ख़मसा पुकार उट्ठे, यकजबाँ होकर
कई सुबूत तेरी ख़ूबी-ए-बदन के मिले।

निसारे-कज़कुलही, शोख़ी -ए- बहारे - चमन
गुर इस अदा से शगूफ़ों को बाँकपन के मिले

हयात वो निगहे-शर्मगीं जिसे बाँटे
वही शराब जो तेरी मिज़ह से छन के मिले।

ख़ुदा गवाह कि हर - दौरे - जिन्दगी में ’फ़िराक़’
नये पयामे-गुनह मुझको अह्रमन के मिले।

शब्दार्थ
<references/>