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22:15, 15 जून 2009 का अवतरण

उझकि झरोखे झाँकि परम नरम प्यारी ,
नेसुक देखाय मुख दूनो दुख दै गई ।
मुरि मुसकाय अब नेकु ना नजरि जोरै ,
चेटक सो डारि उर औरै बीज बै गई ।
कहै कवि गंग ऎसी देखी अनदेखी भली ,
पेखै न नजरि मेँ बिहाल बाल कै गई ।
गाँसी ऎसी आँखिन सोँ आँसी आँसी कियो तन ,
फाँसी ऎसी लटनि लपेटि मन लै गई ।

गँग का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।