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"उदारीकरण / बुद्धिनाथ मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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काट लेना पेड़ बरगद का ख़ुशी से
 
काट लेना पेड़ बरगद का ख़ुशी से
 
 
नाश या निर्माण कर, अधिकार तेरा ।
 
नाश या निर्माण कर, अधिकार तेरा ।
 
 
तू चला बेशक कुल्हाड़ी, किन्तु पहले
 
तू चला बेशक कुल्हाड़ी, किन्तु पहले
 
 
पाखियों को ढूंढ़ने तो दे बसेरा ।
 
पाखियों को ढूंढ़ने तो दे बसेरा ।
 
  
 
है नशे में धुत्त, न जानेगा कभी तू
 
है नशे में धुत्त, न जानेगा कभी तू
 
 
यह अहं तलवार का कितना बुरा है
 
यह अहं तलवार का कितना बुरा है
 
 
तू न संगत में रहा कवि की, इसी से
 
तू न संगत में रहा कवि की, इसी से
 
 
यार, तेरा लफ़्ज इतना ख़ुरदुरा है  
 
यार, तेरा लफ़्ज इतना ख़ुरदुरा है  
 
  
 
रात के अंतिम पहर तक जागता जो
 
रात के अंतिम पहर तक जागता जो
 
 
सांझ ही उस कौम का होता सबेरा ।
 
सांझ ही उस कौम का होता सबेरा ।
 
  
 
देख तूने भी लिया है बाज होकर
 
देख तूने भी लिया है बाज होकर
 
 
बाज होना : काटना ख़ुद को अकेले ।
 
बाज होना : काटना ख़ुद को अकेले ।
 
 
अब जरा मेरी तरह तू बन कबूतर
 
अब जरा मेरी तरह तू बन कबूतर
 
 
और फिर तू झेल दुनिया के झमेले
 
और फिर तू झेल दुनिया के झमेले
 
  
 
इक गुटरगूँ प्यार का तू बोल प्यारे
 
इक गुटरगूँ प्यार का तू बोल प्यारे
 
 
मुस्करा कर काट दे गम का अंधेरा ।
 
मुस्करा कर काट दे गम का अंधेरा ।
 
  
 
जानता मैं भी कि चैती के दिनों में
 
जानता मैं भी कि चैती के दिनों में
 
 
तोड़ देना बांध को कितना सरल है
 
तोड़ देना बांध को कितना सरल है
 
 
किन्तु जब बहने लगेंगे बाढ़ में घर
 
किन्तु जब बहने लगेंगे बाढ़ में घर
 
 
तब समझना यह नदी कितनी प्रबल है ।
 
तब समझना यह नदी कितनी प्रबल है ।
 
  
 
रंग भरना सीख पहले ज़िन्दगी से
 
रंग भरना सीख पहले ज़िन्दगी से
 
 
तब कहीं जाकर कभी बनना चितेरा ।
 
तब कहीं जाकर कभी बनना चितेरा ।
  
(रचनाकाल : 27.05.2000)
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'''(रचनाकाल : 27.05.2000)
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01:49, 29 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

काट लेना पेड़ बरगद का ख़ुशी से
नाश या निर्माण कर, अधिकार तेरा ।
तू चला बेशक कुल्हाड़ी, किन्तु पहले
पाखियों को ढूंढ़ने तो दे बसेरा ।

है नशे में धुत्त, न जानेगा कभी तू
यह अहं तलवार का कितना बुरा है
तू न संगत में रहा कवि की, इसी से
यार, तेरा लफ़्ज इतना ख़ुरदुरा है

रात के अंतिम पहर तक जागता जो
सांझ ही उस कौम का होता सबेरा ।

देख तूने भी लिया है बाज होकर
बाज होना : काटना ख़ुद को अकेले ।
अब जरा मेरी तरह तू बन कबूतर
और फिर तू झेल दुनिया के झमेले

इक गुटरगूँ प्यार का तू बोल प्यारे
मुस्करा कर काट दे गम का अंधेरा ।

जानता मैं भी कि चैती के दिनों में
तोड़ देना बांध को कितना सरल है
किन्तु जब बहने लगेंगे बाढ़ में घर
तब समझना यह नदी कितनी प्रबल है ।

रंग भरना सीख पहले ज़िन्दगी से
तब कहीं जाकर कभी बनना चितेरा ।

(रचनाकाल : 27.05.2000)