भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उद्गीत / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:14, 11 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatHai...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1
मैं हूँ उद्गीत
भँवर से गाते हो
मुझे ओ मीत
2
मैं हूँ पाँखुरी
तुम रंग हो मेरा
सदैव संग
3
तुम प्रणव
मैं श्वासों की लय हूँ
तुम्हें ही जपूँ
4
प्रतीक्षारत
तापसी योगिनी मैं
तू योगीश्वर
5
शैल नदी -सी
प्रत्येक शिला पर
लिखा संघर्ष
6
प्रकृति आद्या
चेताये मानव को
तोड़ती भ्रम
7
दिग-दिगन्त
कुपित मानव से
फूटा रुदन
8
संध्या व भोर
ये प्रकृति नचाये
खींचती डोर
9
मद में चूर
मानव की पिपासा
प्रकृति दूर
10
उमड़े ज्वार
मन समंदर में
भाटा विचार
11
बाहर तूफाँ
मन के भीतर का
उससे भारी
12
मूल कारण
प्राकृतिक कोप का
अतिक्रमण
13
जो वीर वेश
तरु जूझे आँधी से
अब भी शेष



-०-