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"उधर बुलंदी पे उड़ता हुआ धुआँ देखा / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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अपने दुश्मन में मैंने अपना मेहरबां देखा
 
अपने दुश्मन में मैंने अपना मेहरबां देखा
  
ऐसे हालात पे रोना भी खूब आया मुझे
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ऐसे अय्याम में भी रोना खूब आया मुझे  
 
जब फटेहाल कभी अपना गिरेबां देखा
 
जब फटेहाल कभी अपना गिरेबां देखा
  
हज़ार मुश्किलें हों फिर भी मुस्कराना है
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हमें तो मुश्किलों के बाद मुस्कराना है
 
हसीन फूल को कांटों के दरमियां देखा
 
हसीन फूल को कांटों के दरमियां देखा
 
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19:41, 12 सितम्बर 2023 के समय का अवतरण

उधर बुलंदी पे उड़ता हुआ धुआं देखा
इधर ग़रीब का जलता हुआ मकां देखा

किसी अमीर ने दिल तोड़ दिया था मेरा
मुद्दतों मैंने उसी चोट का निशां देखा

वहम ये मिट गया मेरा कि सर पे छत ही नहीं
नज़र उठा के ज्यों ही मैंने आसमां देखा

बहुत तलाश किया हर जगह ढूंढ़ा उसको
मुझको ये याद नहीं कब उसे कहां देखा?

अजीब हादसे भी ज़िंदगी में होते हैं
अपने दुश्मन में मैंने अपना मेहरबां देखा

ऐसे अय्याम में भी रोना खूब आया मुझे
जब फटेहाल कभी अपना गिरेबां देखा

हमें तो मुश्किलों के बाद मुस्कराना है
हसीन फूल को कांटों के दरमियां देखा