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उनके वादे कल के हैं / बालस्वरूप राही

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उनके वादे कल के हैं
हम मेहमाँ दो पल के हैं ।

कहने को दो पलके हैं
कितने सागर छलके हैं ।

मदिरालय की मेज़ों पर
सौदे गंगा जल के हैं ।

नई सुबह के क्या कहने
ठेकेदार धुँधलके हैं ।

जो आधे में छूटी हम
मिसरे उसी ग़ज़ल के हैं ।

बिछे पाँव में क़िस्मत है
टुकड़े तो मखमल के हैं ।

रेत भरी है आँखों में
सपने ताजमहल के हैं ।

क्या दिमाग़ का हाल कहे
सब आसार खलल के हैं ।

सुने आपकी राही कौन
आप भला किस दल के हैं ।