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"उनसे जब भी मुसाफ्हा कीजे / सर्वत एम जमाल" के अवतरणों में अंतर

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17:18, 5 सितम्बर 2010 का अवतरण

साँचा:KKCatGazal

उन से जब भी मुसाफ्हा कीजे
उँगलियाँ अपनी गिन लिया कीजे

दूध में हल तो हो गया पानी
अब ज़रा दूध को जुदा कीजे

बेडियाँ रात ही में टूटी थीं
रात कट जाए यह दुआ कीजे

बंद कमरे घुटन उगाते हैं
कुछ घड़ी धूप में रहा कीजे

आपको भी वतन पे प्यार आया
इस मरज़ की कोई दवा कीजे

इन्कलाब, इस जगह पे, नामुमकिन
चैन से बैठिये, मज़ा कीजे