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"उनसे जब भी मुसाफ्हा कीजे / सर्वत एम जमाल" के अवतरणों में अंतर

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उन से जब भी मुसाफ्हा कीजे
 
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उँगलियाँ अपनी गिन लिया कीजे
 
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दूध में हल तो हो गया पानी
 
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अब ज़रा दूध को जुदा कीजे
 
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बेडियाँ रात ही में टूटी थीं
 
बेडियाँ रात ही में टूटी थीं
 
 
रात कट जाए यह दुआ कीजे
 
रात कट जाए यह दुआ कीजे
 
  
 
बंद कमरे घुटन उगाते हैं  
 
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कुछ घड़ी धूप में रहा कीजे  
 
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आपको भी वतन पे प्यार आया
 
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इस मरज़ की कोई दवा कीजे
 
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इन्कलाब, इस जगह पे, नामुमकिन
 
इन्कलाब, इस जगह पे, नामुमकिन
 
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चैन से बैठिये, मज़ा कीजे
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17:19, 5 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

उन से जब भी मुसाफ्हा कीजे
उँगलियाँ अपनी गिन लिया कीजे

दूध में हल तो हो गया पानी
अब ज़रा दूध को जुदा कीजे

बेडियाँ रात ही में टूटी थीं
रात कट जाए यह दुआ कीजे

बंद कमरे घुटन उगाते हैं
कुछ घड़ी धूप में रहा कीजे

आपको भी वतन पे प्यार आया
इस मरज़ की कोई दवा कीजे

इन्कलाब, इस जगह पे, नामुमकिन
चैन से बैठिये, मज़ा कीजे