भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उमग पड़ी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

11
छुपा है चाँद
आँचल में घटा के
हुई व्याकुल रात
कहे किससे
अब दिल की बात
गिरे ओस के आँसू।
12
उमग पड़ी,
खुशबू की सरिता
पुलकित शिराएँ।
'नहीं छोड़ेंगे'-
कहा जब उसने,
थी महकीं दिशाएँ।
13
लहरा गया
सुरभित आँचल,
धारा बनकरके
बहे धरा पे
सुरभित वचन;
महका था गगन।
14
बीता जीवन
कभी घने बीहड़
कभी किसी बस्ती में
काँटे भी सहे
कभी फ़ाक़े भी किए
पर रहे मस्ती में।
15
तुमसे कभी
नेह का प्रतिदान
माँगूँ तो टोक देना
फ़ितरत है-
भला करूँ सबका
बुरा हो रोक देना।