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"उम्र भर ख़ाक ही छाना किये वीराने की / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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शुक्र है, आप न लाये कभी प्याला मुझ तक
 
शुक्र है, आप न लाये कभी प्याला मुझ तक
मेरी आदत है बुरी, पी के बहक जाने की
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मेरी आदत है बुरी, पीके बहक जाने की
  
 
दिल में एक हूक-सी उठती है आइने को देख
 
दिल में एक हूक-सी उठती है आइने को देख
क्या से क्या हो गए गर्दिश में हम ज़माने की
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क्या से क्या हो गए गर्दिश से हम ज़माने की
  
 
देखते-देखते आँखें चुरा गयी है बहार
 
देखते-देखते आँखें चुरा गयी है बहार

01:13, 14 जुलाई 2011 का अवतरण


उम्र भर ख़ाक ही छाना किये वीराने की
ली नहीं उसने ख़बर भी कभी दीवाने की

शुक्र है, आप न लाये कभी प्याला मुझ तक
मेरी आदत है बुरी, पीके बहक जाने की

दिल में एक हूक-सी उठती है आइने को देख
क्या से क्या हो गए गर्दिश से हम ज़माने की

देखते-देखते आँखें चुरा गयी है बहार
याद भर रह गयी फूलों के मुस्कुराने की

जिसने भेजा था घड़ी भर तुझे खिलने को,गुलाब!
फ़िक्र क्या, जो वही आवाज़ दे घर आने की