भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उलटफेर / संगम मिश्र

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:31, 16 दिसम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संगम मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ठनी, प्रकाश और अँधियारे
में घनघोर लड़ाई।

यद्यपि युग-युग से दोनों
आपस में लड़ते आये।
पर दैनिक हाथापाई से
अबतक उबर न पाये।
उजियारा हर बार तिमिर को
दूर झटक देता है।
वीर अँधेरा भी प्रकाश
को पुनः पटक देता है।

नहीं सदा के लिये किसी ने
अपनी पीठ दिखाई।

कभी प्रकाश राज करता है
कभी मात्र अँधियारा।
दोनों के अनुगत रहता
क्रमशः जन जीवन सारा।
निश्चय, उलटफेर का क्रम
विधिगत सर्वथा सही है।
शासन सतत एक का हो
यह सम्भव कभी नहीं है।

अखिल विश्व की यही चिरन्तन
एक मात्र सच्चाई।

विधि ने पूण्य धरित्री पर
बहुरङ्गी दृश्य बिखेरा।
आज प्रफुल्लित विजयदिवस
कल अन्धकार का घेरा।
नहीं चाहती प्रकृति रिक्त हो
उसका कोई कोना।
निश्चय ही आवश्यक है
अस्तित्व उभय का होना।

छोटी-सी यह बात समझ में
नहीं किसी के आई।