भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ / अमीर मीनाई" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) छो () |
(Removed the lines that were by Mirza Ghalib..) |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ | ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ | ||
− | |||
− | |||
− | |||
डाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा | डाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा | ||
पंक्ति 18: | पंक्ति 15: | ||
ज़ब्त<ref> सहनशीलता-Forbearance </ref> कमबख़्त ने और आ के गला घोंटा है | ज़ब्त<ref> सहनशीलता-Forbearance </ref> कमबख़्त ने और आ के गला घोंटा है | ||
के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ | के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ | ||
− | |||
− | |||
− | |||
उस के पहलू<ref> गोद-Lap</ref>में जो ले जा के सुला दूँ दिल को | उस के पहलू<ref> गोद-Lap</ref>में जो ले जा के सुला दूँ दिल को |
12:58, 24 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण
उस की हसरत<ref>इच्छा-desire </ref> है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ
डाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा
कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी के मिटा भी न सकूँ
ज़ब्त<ref> सहनशीलता-Forbearance </ref> कमबख़्त ने और आ के गला घोंटा है
के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ
उस के पहलू<ref> गोद-Lap</ref>में जो ले जा के सुला दूँ दिल को
नींद ऐसी उसे आए के जगा भी न सकूँ
नक्श-ऐ-पा देख तो लूँ लाख करूँगा सजदे
सर मेरा अर्श<ref>आसमान</ref> नहीं है कि झुका भी न सकूँ
बेवफ़ा लिखते हैं वो अपनी कलम से मुझ को
ये वो किस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ
इस तरह सोये हैं सर रख के मेरे जानों पर
अपनी सोई हुई किस्मत को जगा भी न सकूँ
शब्दार्थ
<references/>