भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उस दिन के लिए तैयार रहना / कविता किरण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(कविता)
 
(कोई अंतर नहीं)

02:53, 3 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण

तुम पूरी कोशिश करते हो
मेरे दिल को दुखाने की
मुझे सताने की
रुलाने की
और इसमें पूरी तरह कामयाब भी होते हो---
सुनो!
मेरे आंसू तुम्हे
बहुत सुकून देते हैं ना!
तो लो..
आज जी भर के सता लो मुझे
देखना चाहते हो ना मेरी सहनशक्ति की सीमा
तो लो..
आज जी भर के
आजमा लो मुझे
और मेरे सब्र को
पर हाँ!
फिर उस दिन के लिए तैयार रहना
कि जिस दिन मेरे सब्र का बाँध टूटेगा
और बहा ले जायेगा तुम्हे
तुम्हारे अहंकार सहित इतनी दूर तक
कि जहाँ तुम
शेष नहीं बचोगे मुझे सताने के लिए
मेरा दिल दुखाने के लिए
मुझे आजमाने के लिए
पड़े होंगे पछतावे और शर्मिंदगी की रेत पर
अपने झूठे दम्भ्साहित
कहीं अकेले--
उस दिन के लिए
तैयार रहना--
तुम!