भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उस पार / रियाज़ लतीफ़

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:21, 20 दिसम्बर 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चले आइए
ज़बानों की सरहद के उस पार
जहाँ बस ख़मोशी का दरिया
मचलता है अपने में तन्हा
ख़ुद अपने अदम ही में ज़िंदा

ज़बानों की सरहद के उस पार
किसी की भी आमद नहीं है
बस इक जाल पैहम हदों का
मगर कोई सरहद नहीं है