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ऊँची मुँडेर पर / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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1
बजा माँदल
घाटियों में उतरे
मेघ चंचल
2
चढ़ी उचक
ऊँची मुँडेर पर
साँझ की धूप
3
नन्हा सूरज
भोर ताल में कूदे
खूब नहाए
4
लहरें झूला
खिल-खिल करता
चाँद झूलता
5
शोख़ तितली
खूब खेलती खो-खो
फूलों के संग
6
सिहरा ताल
लिपटी थी धुंध की
शीतल शॉल
7
उठते गए
भवन फफोले- से
हरी धरा पे
8
ठूँठ जहाँ हैं
कभी हरे-भरे थे
गाछ वहाँ पे
9
लोभ ने रौंदी
गिरिवन की काया
घाटी का रूप
10
हरी पगड़ी
हर ले गए बाज़
चुभती धूप
11
हरीतिमा की
ऐसी किस्मत फूटी
छाया भी लूटी
12
कड़ुआ धुआँ
लीलता रात-दिन
मधुर साँसें