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ऊब चले हैं (हाइकु) / कमलेश भट्ट 'कमल'

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1
ऊब चले हैं
वर्षा की प्रतीक्षा में
पेड़-पौधे भी।
2
पीने लगा है
धरती का भी पानी
प्यासा सूरज ।
3
निकली नहीं
कंजूस बादलों से
एक भी बूँद ।
4
तरस गये
पहचान को खुद
सावन-भादौं ।
5
कहो तो सही
मन प्राणों से तुम
वक्त सुनेगा ।
6
मुँह चिढ़ाए
लम्बे-चौड़े पुल को
सूखती नदी ।
7
चिनगारियाँ
फैल गईं नभ में
चाँद निश्चिंत ।
8
धूल ढँकेगी
पत्तों की हरीतिमा
कितने दिन ?
9
है कोई रात
जिसका अभी तक
न हुआ प्रात ।
10
कड़ी धूप में
मशाल लिये खड़ा
तन्हा पलाश ।
11
ठीक वैसा ही
सरहद पार भी
हर्ष-विषाद ।
12
वर्षा ने बुने
शीशे की खिड़की पे
बूँदों के तार ।
13
मर जाएँगे
हरियाली मरी तो
हम सब भी ।
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