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'''चुक नहीं पाए थे जिसके दाम तक'''
कंगाली में आटा गीला के इस मुहावरे का सत्य किस कलात्मक रीति से ‘चुक नहीं पाए थे जिसके दाम तक’ में उभरा है । जिसके पास जितनी गंुजाइश गुंजाइश हो, आंक ले इनका मूल्य ।
कितना कहा जाए ? कितना लिखा जाए ? कवि ‘अकेला’ के काव्य संसार का महिमा मंडित सजा-धजा बहुरंगी मेला सृष्टि का समग्र दर्शन है । काव्यानन्द की हमारी प्राप्ति है ।
दिखावे की ललक और उसके कारण दुनिया की बुरी नियत को उजागर कर देने की बात कितनी सटीक इन दो पंक्तियांें पंक्तियों में हैं लीजिए पढ़िए
'''प्रेयसि ! दुनिया बहुत बुरी है और फिर बाहर चलना है'''
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