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"एक अनबुझी सी चाह मेरे साथ रही है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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<poem>
 
  
एक अनबुझी सी चाह मेरे साथ रही है
 
हरदम तेरी निगाह मेरे साथ रही है
 
 
मंजिल हज़ार बार बगल से निकल गयी
 
जाने ये कैसी राह मेरे साथ रही है!
 
 
बिजली कभी-कभी जो चमक ही गयी तो क्या!
 
ग़म की घटा सियाह मेरे साथ रही है
 
 
डरते जो आँधियों से वे मांझी थे और ही
 
लिपटी किसी की बांह मेरे साथ रही है
 
 
यों तो हरेक अदा में तेरी हैं खिले गुलाब
 
एक बेबसी की आह मेरे साथ रही है
 
<poem>
 

01:53, 12 अगस्त 2011 के समय का अवतरण