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एक और अंधेरा / विप्लव ढकाल / सुमन पोखरेल

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ये रात भी उसी तरह गुजर गया
सहर होते होते एक और अन्धेरा का आगाज होगा ।

वही खुदकस नज्मे
चाँद और दरिया के शदियों एकतरफा गुफ्तगु
वही बदसुरत अमन
और कानून के बाँसुरी से निकले हुए
आलुदा भाप ।

वही पसेमान आफताब
वही खुदा, वही साइकल
और वही भूख अपने को दोहराते हैँ फिर ।
वही थकावट, वही बन्दुक
और वही सोहबत दोहरते हैं फिर ।
कुत्ता रो रहा है स्याही सी अँधेरे में
वही मौत दोहरते है फिर ।

यह रात भी उसी तरह गुजर गया
सहर होते होते एक और अंधेरा का आगाज होगा ।