भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक किरण है भोर की / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(' 12 दोष सभी मैं ओढ़ लूँ, मुझको सदा क़ुबूल। पड़ने दूँगा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
 +
}}
 +
{{KKCatDoha}}
 +
<poem>
 
12
 
12
 
दोष सभी मैं ओढ़ लूँ, मुझको सदा क़ुबूल।
 
दोष सभी मैं ओढ़ लूँ, मुझको सदा क़ुबूल।
पंक्ति 19: पंक्ति 24:
 
कौन वैद कर पाएगा,ऐसों का उपचार।।
 
कौन वैद कर पाएगा,ऐसों का उपचार।।
 
18
 
18
एक किरण है भोर की,मेरे मन के द्वार।
+
'''एक किरण है भोर की,मेरे मन के द्वार।'''
सब अँधियारे चीरके ,आएगा उजियार।
+
'''सब अँधियारे चीरके ,आएगा उजियार।'''
 
19
 
19
 
सारे धन छूटें भले, धीरज रखना साथ।
 
सारे धन छूटें भले, धीरज रखना साथ।
पंक्ति 33: पंक्ति 38:
 
सुखमय जीवन हो सदा,मिट जाएँ सन्ताप।
 
सुखमय जीवन हो सदा,मिट जाएँ सन्ताप।
 
हर पल सौरभ ही उड़े, जिसके संग हों आप।।
 
हर पल सौरभ ही उड़े, जिसके संग हों आप।।
 +
 
-0-
 
-0-
 +
</poem>

08:57, 3 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

12
दोष सभी मैं ओढ़ लूँ, मुझको सदा क़ुबूल।
पड़ने दूँगा ना कभी,उन पर कीचड़ ,धूल।।
13
गहन निशा में गूँजती,तेरी करुण पुकार।
घाटी पर्वत कर उठे,मिलकर हाहाकार।।
14
सिर्फ़ दुआएँ ही रहें,सदा हमारे पास।
फलीभूत होगी कभी,मन की सच्ची आस।।
15
घनी अहित की आग से,जलते तीनों लोक।
हित करते तन- मन जले,इसका मुझको शोक।
16
इस धरती पर कुछ मिले, नफ़रत के अवतार।
करें आचमन शाप का,झुलसा देते प्यार।।
17
बसा ज़हर हर पोर में,वाणी में अंगार।
कौन वैद कर पाएगा,ऐसों का उपचार।।
18
एक किरण है भोर की,मेरे मन के द्वार।
सब अँधियारे चीरके ,आएगा उजियार।
19
सारे धन छूटें भले, धीरज रखना साथ।
पथ में आएँ आँधियाँ, थामे रखना हाथ।।
20
तन माटी का ढेर है, इसका निश्चित नाश।
नहीं छूटते हैं कभी,मन के बाँधे पाश।
21
एक चदरिया ज़िन्दगी,उधड़े जिसके छोर।
हमने चाहा बाँधना,छिदे हाथ के पोर ।
22
सुखमय जीवन हो सदा,मिट जाएँ सन्ताप।
हर पल सौरभ ही उड़े, जिसके संग हों आप।।

-0-