भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक द्वन्द्वात्मक स्थिति / रणजीत

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:31, 1 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत |संग्रह=प्रतिनिधि कविताएँ / रणजीत }} {{KKCatKavita‎…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वाद-प्रतिवाद

दर्द बड़ा है
गीत हैं ओछे
पूरा दर्द नहीं कह पाते,
प्यार बड़ा है
मीत है ओछे
पूरा प्यार नहीं सह पाते ।

संवाद

दर्द कितना भी बड़ा हो
व्यर्थ है उसका बड़प्पन
जब तलक वह गीत में आता नहीं है
गीत कितना भी सुघड़ हो
व्यर्थ है उसकी सुघड़ता
जब तलक वह दर्द को पाता नहीं है !
प्यार कितना भी खरा हो
व्यर्थ है उसका खरापन
जब तलक वह मीत को भाता नहीं है
मीत कितना भी सुभग हो
व्यर्थ है उसकी सुभगता
जब तलक वह प्यार कर पाता नहीं है !