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एक पिछङा हुआ आदमी / रमेश ऋतंभर

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कभी वह किसी अन्धे को सङक पार कराने में लग गया
कभी वह किसी बीमार की तीमारदारी में जुट गया
कभी वह किसी झगडे के निपटारे में फंसा रह गया
कभी वह किसी मुहल्ले में लगी आग बुझाने में रह गया
कभी वह अपने हक-हकूक की लङाई लङ रहे लोगों के जुलूस में शामिल हो गया...
और अन्ततः दुनिया के घुङदौङ में वह पिछङता चला गया...
मानव-सभ्यता के इतिहास में दोस्तों
वही पिछङा हुआ आदमी कहलाया।