भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक बूँद / सियाराम शरण गुप्त" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>"मैं हूँ कृ…)
 
 
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
  
 
"बस बस, एक बूँद ही दे दे!"
 
"बस बस, एक बूँद ही दे दे!"
कहा तृषार्ता नें खिलकर-
+
कहा तृषार्ता ने खिलकर-
"किसके पास, कहाँ जाउँ अब
+
"किसके पास, कहाँ जाऊँ अब
 
तुझ-से दानी से मिलकर?
 
तुझ-से दानी से मिलकर?
  

09:59, 29 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

"मैं हूँ कृपण कहाँ आई तू
ले कर जीवन भर की प्यास?
दे सकता हूँ एक बूँद मैं,
जा तू अन्य धनी के पास।"

"बस बस, एक बूँद ही दे दे!"
कहा तृषार्ता ने खिलकर-
"किसके पास, कहाँ जाऊँ अब
तुझ-से दानी से मिलकर?

सिक्ता की कंटक शैय्या पर
इसी बूँद की आशा में
आतप के पंचाग्नि ताप से
डिगी नहीं हूँ मैं तिल भर।

मेरे पुलक-स्वाति के घन हे।
पूरा कर मेरा अभिलाष;
अधिक नहीं, बस, इस सीपी को
एक बूँद की ही है प्यास।"