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एक मिट्टी का खिलौना / प्रतिभा सक्सेना

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एक मिट्टी का खिलौना जिन्दगी,
ढालने को जन्म भी तैयार है, खेलने को मौत भी तैयार!

चार साँसें, एक आँसू, एक स्मिति की लहर,
एक आशा एख भाषा एक स्वर,
और थोडी सी कसकती वेदना,
और भरने के लिये छोटा प्रहर!
एक छोटी सी कहानी जिन्दगी,
जोडने को जन्म भी तैयार है, मोडने को मौत भी तैयार!

एक क्षण को आँख की पलकें झँपीं,
स्वप्न बन कर ढल गये अनजान से
और क्या होगा इसी की याद को,
कल्पना भरने लगी अनुमान से!
एक ऐसी है पहेली जिन्दगी,
पूछने को जन्म भी तैयार है,पोंछने को मौत भी तैयार!

ढल रहा था काल के इस चक्र में,
रूपरेखा किन्तु पहचानी लगी,
मृत्तिका ने तन दिया, यौवन दिया,
अग्नि मे तप प्राण चेतनता जगी!
एक ऐसी रागिनी है जिन्दगी,
छेडने को जन्म भी तैयार है, छोडने को मौत भी तैयार!

और सदियाँ ढल गईँ बस इस तरह,
हार जीवन ने कभी मानी नहीं,
मिट्टियों से फिर नये अँकुर जगे, मौत की यह एक मेहमानी रही!
एक ऐसी यात्रा है जिन्दगी,
राह देने जन्म भी तैयार है, छाँह देने मौत भी तैयार!