भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक रुबाई / आसी ग़ाज़ीपुरी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:13, 10 नवम्बर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दागे़दिल दिलबर नहीं, सिने से फिर लिपटा हूँ क्यों?
मैं दिलेदुश्मन नहीं, फिर यूँ जला जाता हूँ क्यों?

रात इतना कहके फिर आशिक़ तेरा ग़श कर गया।
"जब वही आते नहीं , मैं होश में आता हूँ क्यों?