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एक शे’र / अली सरदार जाफ़री

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एक शे’र
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तिरगी<ref>अंधकार</ref> फिर ख़ूने-इंसाँ की क़बा<ref>गाउन</ref> पहने हुए
दे रही है सुब्‌हे-नौ का कमनिगाहों को फ़रेब

शब्दार्थ
<references/>