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ये है वृन्दावन उधो, मथुरा ही जाइये।
ज्ञान रिखाने सिखाने मैं आया तुम्हें, सही प्रेम का पाठ मैं सीख चला,
धन्य है प्रेम के पाठक को पढि प्रेम के मारग ठीक चला।
ज्ञान कबान ना बान सधा उर प्रेम बसा कर नीक चला,
सो जन्म रहूं ब्रज की रज में तुमसे यही मांग के भीख चला।
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