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"ऐसा क्यों / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर

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<poem>क्यों सजाए हो
 
<poem>क्यों सजाए हो
सिंधुघाटी के उस एक मात्र कंकाल को
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सिंधुघाटी के उस एक मात्र
आलिंगनबद्ध जोडे़ के कंकाल को
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आलिंगनबद्ध जोड़े के कंकाल को
कंटीले तरों के बीच </poem>
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कंटीले तार्पं के बीच !
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आओ, खीच दो
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प्रत्येक शहर के चारों ओर
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कंटीले तार
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लम्बी
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ऊंची दीवारें
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क्यों कि, तुम्हे मिलेगा यहां
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अंदर से सांकल चढ़े
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प्रत्येक बन्द कमरे में
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भूख की
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बेहोशी की मौत मरा
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आलिंगनबद्ध
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हर एक नर-मादा का जोड़ा।
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तुम उधर कतई नहीं देखोगे
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मुझे पता है ;
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तुम्हें वर्तमान को भूल
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भूत को ढ़ोने
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भविष्य को रोने की
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आदत पड़ गई है
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तभी तो तुम्हें
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आज विश्‍व मानचित्र पर
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रोटी मांगते हाथ, कहां दिखते है ?
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कहां दिखती है
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हिरोसिमा
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नागासाकी
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भौपाल गैस त्रासदी ?
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तुम्हें चिंता है
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स्टारवार
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रोबोट युग की।
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और चिंता है।
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सिंधु घाटी के अवशेषों की
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समुद्र में डूबी द्धारका
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राम की अयोध्या
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रावण के सोने की लंका की।
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तुम्हें कहां चिंता है
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समय से कटते
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इन चाम चढ़े
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जिन्दा नर कंकालों की ?
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तुम तो बस, लीन हो
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अपने वर्तमान की
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मुर्दा लाश को सजाने में।
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संस्कृति का खून
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तुम्हारे मुंह लग वुका है
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चटखारे ले-ले कर
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हाड तक चटकर सकते हो।
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लेकिन नहीं, हाड नहीं !
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नर कंकाल तो
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विदेशी मुद्रा जुटाने का
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साधन है तुम्हारा;
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हाड भला क्यों चट करोगे ?
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तुम स्वार्थ पूर्ति के लिए
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ठोर तलाशते हो
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व्यक्तिगत लाभार्थ
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सूंघते-चाटते हो
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वरना उस पर
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एक टांग उठा
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मूत करने में
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कहां चूकते हो ?
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04:50, 15 जुलाई 2010 का अवतरण

क्यों सजाए हो
सिंधुघाटी के उस एक मात्र
आलिंगनबद्ध जोड़े के कंकाल को
कंटीले तार्पं के बीच !
आओ, खीच दो
प्रत्येक शहर के चारों ओर
कंटीले तार
लम्बी
ऊंची दीवारें
क्यों कि, तुम्हे मिलेगा यहां
अंदर से सांकल चढ़े
प्रत्येक बन्द कमरे में
भूख की
बेहोशी की मौत मरा
आलिंगनबद्ध
हर एक नर-मादा का जोड़ा।
तुम उधर कतई नहीं देखोगे
मुझे पता है ;
तुम्हें वर्तमान को भूल
भूत को ढ़ोने
भविष्य को रोने की
आदत पड़ गई है
तभी तो तुम्हें
आज विश्‍व मानचित्र पर
रोटी मांगते हाथ, कहां दिखते है ?
कहां दिखती है
हिरोसिमा
नागासाकी
भौपाल गैस त्रासदी ?

तुम्हें चिंता है
स्टारवार
रोबोट युग की।
और चिंता है।
सिंधु घाटी के अवशेषों की
समुद्र में डूबी द्धारका
राम की अयोध्या
रावण के सोने की लंका की।

तुम्हें कहां चिंता है
समय से कटते
इन चाम चढ़े
जिन्दा नर कंकालों की ?
तुम तो बस, लीन हो
अपने वर्तमान की
मुर्दा लाश को सजाने में।

संस्कृति का खून
तुम्हारे मुंह लग वुका है
चटखारे ले-ले कर
हाड तक चटकर सकते हो।
लेकिन नहीं, हाड नहीं !
नर कंकाल तो
विदेशी मुद्रा जुटाने का
साधन है तुम्हारा;
हाड भला क्यों चट करोगे ?

तुम स्वार्थ पूर्ति के लिए
ठोर तलाशते हो
व्यक्तिगत लाभार्थ
सूंघते-चाटते हो
वरना उस पर
एक टांग उठा
मूत करने में
कहां चूकते हो ?