भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही / ख़ुमार बाराबंकवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=खुमार बाराबंकवी
+
|रचनाकार=ख़ुमार बाराबंकवी
 
|संग्रह=  
 
|संग्रह=  
 
}}
 
}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
 
ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही  
 
ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही  
जज़्बात में वो पहले सी शिद्दत नहीं रही  
+
जज़्बात में वो पहले-सी शिद्दत नहीं रही  
  
 
सर में वो इंतज़ार का सौदा नहीं रहा  
 
सर में वो इंतज़ार का सौदा नहीं रहा  
दिल पर वो धड़कनों की हुकूमत नहीं रही  
+
दिल पर वो धड़कनों की हुक़ूमत नहीं रही  
  
पैहम तवाफ-ऐ-कूचा--जाना के दिन गए  
+
पैहम तवाफ़े-कूचा--जानाँ के दिन गए  
 
पैरों में चलने-फिरने की ताक़त नहीं रही  
 
पैरों में चलने-फिरने की ताक़त नहीं रही  
  
पंक्ति 18: पंक्ति 19:
 
आईना देखने की भी हिम्मत नहीं रही  
 
आईना देखने की भी हिम्मत नहीं रही  
  
कमजोरी--निगाह ने संजीदा कर दिया  
+
कमज़ोरी--निगाह ने संजीदा कर दिया  
 
जलवों से छेड़-छाड़ की आदत नहीं रही  
 
जलवों से छेड़-छाड़ की आदत नहीं रही  
  
अल्लाह जाने मौत कहाँ मर गई 'खुमार '
+
अल्लाह जाने मौत कहाँ मर गई 'ख़ुमार'
अब मुझ को ज़िन्दगी की ज़रूरत नहीं रही  
+
अब मुझको ज़िन्दगी की ज़रूरत नहीं रही  
 +
 
 
</poem>
 
</poem>

19:52, 12 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण


ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही
जज़्बात में वो पहले-सी शिद्दत नहीं रही

सर में वो इंतज़ार का सौदा नहीं रहा
दिल पर वो धड़कनों की हुक़ूमत नहीं रही

पैहम तवाफ़े-कूचा-ए-जानाँ के दिन गए
पैरों में चलने-फिरने की ताक़त नहीं रही

चेहरे की झुर्रियों ने भयानक बना दिया
आईना देखने की भी हिम्मत नहीं रही

कमज़ोरी-ए-निगाह ने संजीदा कर दिया
जलवों से छेड़-छाड़ की आदत नहीं रही

अल्लाह जाने मौत कहाँ मर गई 'ख़ुमार'
अब मुझको ज़िन्दगी की ज़रूरत नहीं रही