"ओम जय जगदीश हरे / श्रद्धा राम फिल्लौरी" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=श्रद्धा राम फिल्लौरी | |रचनाकार=श्रद्धा राम फिल्लौरी | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKPrasiddhRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
(1) | (1) | ||
ॐ जय जगदीश हरे | ॐ जय जगदीश हरे | ||
पंक्ति 73: | पंक्ति 73: | ||
संतन की सेवा | संतन की सेवा | ||
ॐ जय जगदीश हरे | ॐ जय जगदीश हरे | ||
− | |||
</poem> | </poem> |
19:08, 24 मार्च 2012 का अवतरण
(1)
ॐ जय जगदीश हरे
स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे,
ॐ जय जगदीश हरे
(2)
जो ध्यावे फल पावे,
दुख बिनसे मन का
स्वामी दुख बिनसे मन का
सुख सम्मति घर आवे,
सुख सम्मति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का
ॐ जय जगदीश हरे
(3)
मात पिता तुम मेरे,
शरण गहूं मैं किसकी
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी .
तुम बिन और न दूजा,
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी
ॐ जय जगदीश हरे
(4)
तुम पूरण परमात्मा,
तुम अंतरयामी
स्वामी तुम अंतरयामी
पारब्रह्म परमेश्वर,
पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी
ॐ जय जगदीश हरे
(5)
तुम करुणा के सागर,
तुम पालनकर्ता
स्वामी तुम पालनकर्ता,
मैं मूरख खल कामी
मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता
ॐ जय जगदीश हरे
(6)
तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति,
किस विध मिलूं दयामय,
किस विध मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति
ॐ जय जगदीश हरे
(7)
दीनबंधु दुखहर्ता,
ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी तुम मेरे
अपने हाथ उठाओ,
अपनी शरण लगाओ
द्वार पड़ा तेरे
ॐ जय जगदीश हरे
(8)
विषय विकार मिटाओ,
पाप हरो देवा,
स्वमी पाप हरो देवा,.
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
संतन की सेवा
ॐ जय जगदीश हरे