भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"और काँटों को लहू किसने पिलाया होगा / फ़रहत शहज़ाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़रहत शहज़ाद |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> और काँटों को लह…) |
|||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
तुमने गुज़रा हुआ कल याद दिलाया होगा | तुमने गुज़रा हुआ कल याद दिलाया होगा | ||
− | जुज़ हमारे ऐ सुलगती हुई तन्हाई तुझे | + | जुज़<ref>सिवा, अतिरिक्त |
+ | </ref> हमारे ऐ सुलगती हुई तन्हाई तुझे | ||
ऐसे सीने से भला किसने लगाया होगा | ऐसे सीने से भला किसने लगाया होगा | ||
पंक्ति 21: | पंक्ति 22: | ||
</poem> | </poem> | ||
+ | {{KKMeaning}} |
08:33, 17 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
और काँटों को लहू किसने पिलाया होगा
हम-सा दीवाना चमन में कोई आया होगा
बेसबब कोई उलझता है भला कब किससे
तुमने गुज़रा हुआ कल याद दिलाया होगा
जुज़<ref>सिवा, अतिरिक्त
</ref> हमारे ऐ सुलगती हुई तन्हाई तुझे
ऐसे सीने से भला किसने लगाया होगा
कोई आया है न ‘शहज़ाद’ कोई आएगा
वहम ने याद के पर्दों को हिलाया होगा
शब्दार्थ
<references/>