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"कँटीली शय्या / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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उनको नागफनी
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तुम कितना रोई !
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वाणी के शर
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पल-पल तुझको
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रहे बींधते
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घायल हो भीष्म-सी
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कभी न सोई
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दु:ख तेरा बेधक
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रहा रुलाता
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अभिशापों की नई
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कथा सुनाता
 
तू जब-जब जागी
 
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गर्म छड़ों से
 
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गर्म आँसू थे छाने
 
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अरी तूने कोकिला
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तुझे जग का
 
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था दु:ख-दर्द मिला
 
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सदा कँटीली शय्या
 
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शर का सिरहाना
 
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00:52, 8 जनवरी 2020 के समय का अवतरण

अमृत बाँट
आँसू की गठरिया
सिर पे ढोई
उनको नागफनी
उगाते देख
तुम कितना रोई !
वाणी के शर
पल-पल तुझको
रहे बींधते
घायल हो भीष्म-सी
कभी न सोई
दु:ख तेरा बेधक
रहा रुलाता
अभिशापों की नई
कथा सुनाता
तू जब-जब जागी
गर्म छड़ों से
तभी गई थी दाग़ी
आँसू पोटली
आँगन में बिखरी
पाहन बनी
तनिक न बिफरी
कोई न आया
तब तुझे बचाने
ढाढ़स देने
न यम न देवता
आहत किया
जब देकर तानें
पीर समेटी
गर्म आँसू थे छाने
झोली भरके
अरी तूने कोकिला !
तुझे जग का
था दु:ख-दर्द मिला
प्यार क्या होता
कब तुमने जाना
सिर्फ़ पढ़ा था
कभी कथा-गीत में
लिखी भाग में
सदा कँटीली शय्या
शर का सिरहाना

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