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कंकर घुल जलजात हो गया / विमल राजस्थानी

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सारी रात कटी आँखों में, हँसते-रोते प्रात हो गया
लाल हुई आँखों की लाली से ही लाल प्रभात हो गया

तुम क्या जानो कितनी गहरी ठेस लगी इस कोमल मन को
आहों की आँधी ने कितना झकझोरा प्रसून-जीवन को
यदि विश्वास न हो तो अम्बर की बिखरी करुणा को देखो
पिघला गयी परायी पीड़ा उज्ज्वल-कज्जल-श्यामल घन को

कजरारी आँखों का काजल धुलकर काली रात हो गया
छलक-छलक उठना नयनों का झिमिर-झिमिर बरसात हो गया

जीवन-बीन पड़ी थी गुमसुम विश्व-कक्ष में एक किनारे
बीत रही थीं दुख की घड़ियाँ, आँसू पी-पी, गिन-गिन तारे
चौखट चूम लौट आया था मन प्रीतम को बिना पुकारे
तभी किन्हीं अदृश्य हाथों ने हँस, वीणा को दिया बजा रे

जनम-जनम का वैरी उँगली का हल्का आघात हो गया
व्रीड़ा-जन्य हुआ अरुणानन संध्या की सौगात हो गया

झूमी डाल, पात भी थिरके, फुनगी तनी बनी गर्वीली
फूल खिलखिलाया, कोमल कलियां भी हुईं और शर्मीली
मन-कोयल कूकी, सपनों की उड़ीं तितलियाँ नीली-पीली
तभी बही जग की ईर्षा की आँधी लिये हवा जहरीली

साँसों के सुरभित समीर पर हावी झंझावात हो गया
मेरा मन-विहंग पतझर का उड़ता पीला पात हो गया
जब तक रहे उफनती धारा, कब दोनों तट मिल पाते हैं
खो जाती है धार रेत में, तब दोनों तट मिल जाते हैं
है दुर्भाग्य सदानीरा के कूल-किनारों के बासी हैं
दुनियावालों की चिकोटियाँ सहने के चिर अभ्यासी हैं

दुर्लभ मिलन, वियोग-विरह की सौगातें ही मिली जगत से
इतना हुआ कि प्यार हमारा अधर-अधर की बात हो गया
जग ने मुँह बिचका-बिचका कर कंकर मार लहर हो छेड़ा
किन्तु, हमारे दरियादिल में कंकर घुल जलजात हो गया

-27.9.1975