भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कच्चा चिट्ठा / वैभव भारतीय

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:46, 25 मार्च 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जान गये तुम सब-कुछ मेरा
मैं ही ख़ुद को जान ना पाया
दुनिया का चेहरा मैं पढ़ता
ख़ुद का चेहरा ना पढ़ पाया।

मैंने कइयों बरस बिताया
ख़ुद से ख़ुद को बहुत मिलाया
पर रोज़ लगा कि बिम्ब कोई
हर बार छूट ही जाता है।

बस चंद झलकियों में खोकर
अफ़वाह-ताल से जल लेकर
तुम एक वर्ष में तोल गए
सब कच्चा चिट्ठा खोल गए।

सच-मुच ही जान गये मुझको?
या बस कोरी बदमाशी है
तुमने अपनी सुविधा ख़ातिर
तथ्यों से की ऐयाशी है।

जितना सच ख़ुद को मुक्त करे
इस अहम-क्षुधा को तृप्त करे
बस उतने से ही मतलब है
ये ही इंसानी फ़ितरत है।