भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कतरा कर ओस निकल भागी / विमल राजस्थानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं प्यासा ही रह गया, प्यार के बादल लौटे बिन बरसे
जीवन के मरू में हृदय खोजकर
हार गया तृण-तरू-छाया
उजले-काले डैनों वाले-
घन-विहगों ने भी भरमाया
कतरा कर ओस निकल भागी, रेतों में घुलने के डर से
मैं प्यासा ही रह गया, प्यार के बादल लौटे बिन बरसे
ऊसर की अंध आँधी से
जलने वालों को तृप्ति मिली
दुनियाँ मुस्कायी जब मेरे-
कोमल मन की बुनियाद हिली
जब फैली अंजलि भरी नहीं ऊपर वाले ने ऊपर से
मन पिघला, पीर उमड़ आयी निज के नयनों के निर्झर से