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कथा प्यार की / पीयूष शर्मा

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पास आओ तुम्हारे लिए प्राण! मैं
आँसुओं से लिखूँगा कथा प्यार की।

रिक्त हैं जब सभी सीपियों के हृदय
प्रेम मोती कहाँ से मिलेगा प्रिये
सूखते जब रहेंगे सरोवर यहाँ
तो कमल किस तरह से खिलेगा प्रिये

इस व्यथा से दुःखी है समूचा जहाँ
लाज कैसे बचाऊँ सदाचार की।

रात गुमसुम हुई चाँद रोया बहुत
अनवरत जब मुझे तुम भुलाने लगे
चित्र धुंधला गए, सूर, रसखान के
प्रेम का नाम जब तुम मिटाने लगे

देह जूठी पड़ी, मौन हैं अब अधर
बात कैसे करूँ पूर्ण संसार की।

स्वप्न विश्वास के, आँख में मर गए
किन्तु तुमसे प्रणय मैं निभाता रहा
हो न पाया हृदय कृष्ण मेरा मगर
मैं तुम्हें राधिका ही बुलाता रहा

भूल बैठे तुम्हीं पल मनोरम सभी
व्यर्थ है बात अब जीत की, हार की।