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कदम्ब-कालिन्दी-1 / अज्ञेय

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(पहला वाचन)

टेर वंशी की
यमुन के पार
अपने-आप झुक आई
कदम की डार।
द्वार पर भर, गहर,
ठिठकी राधिका के नैन
झरे कँप कर
दो चमकते फूल।
फिर वही सूना अंधेरा
कदम सहमा
घुप कलिन्दी कूल !