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वो जो कद्दू पे बैठी हैं दो बच्चियाँ
ओ उमर तू मुझे बस वहीं छोड़ दे !
 
 
बस समय मोड़ दे !
 
 
आ उमर बैठ सीढ़ी पे बातें करें
फूल बन कर कभी औ’ कभी बन घटा
माँ से नज़रें बचा पेड़ पे जा चढ़ें !
 
 
आ ये पग खोल दे !
 
 
क्या तुझे याद है सीपियाँ बीनना
और चुपके से दादी के जा सामने
चाचियों का बढ़ा घूँघटा खींचना !
 
 
पल वो अनमोल दे !
 
 
वो जो भईया का था छोटा सा मेमना
बस मुझे तू वहीँ छोड़ आ अब उमर
चारागाहों में भाता मुझे घूमना !
 
 
पट खुले छोड़ दे!
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