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कबीर दोहावली / पृष्ठ १

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मानुष से देवत किया करत न लागी बार ॥ 5 ॥ <BR/><BR/>
कबीरा कबिरा माला मनहि की, और संसारी भीख । <BR/>
माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख ॥ 6 ॥ <BR/><BR/>