भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कभी वो शोख़ मेरे दिल की अंजुमन तक आए / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अना' क़ासमी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> कभी वो शोख़ मेर…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
कभी वो शोख़ मेरे दिल की अंजुमन तक आए | कभी वो शोख़ मेरे दिल की अंजुमन तक आए | ||
− | मेरे ख़्याल से गुज़रे मेरे सुख़न तक आए | + | मेरे ख़्याल से गुज़रे मेरे सुख़न<ref>कवित्व</ref> तक आए |
जो आफ़ताब थे ऐसा हुआ तेरे आगे | जो आफ़ताब थे ऐसा हुआ तेरे आगे | ||
तमाम नूर समेटा तो इक किरन तक आए | तमाम नूर समेटा तो इक किरन तक आए | ||
− | कहे हैं लोग कि मेरी ग़ज़ल के पैकर से | + | कहे हैं लोग कि मेरी ग़ज़ल के पैकर<ref>साँचा</ref> से |
कभी कभार तेरी ख़ुशबू-ए-बदन तक आए | कभी कभार तेरी ख़ुशबू-ए-बदन तक आए | ||
जो तू नहीं तो बता क्या हुआ है रात गए | जो तू नहीं तो बता क्या हुआ है रात गए | ||
− | मेरी रगों में तेरे लम्स की चुभन तक आए | + | मेरी रगों में तेरे लम्स<ref>स्पर्श</ref> की चुभन तक आए |
− | अब अश्क पोंछ ले जाकर कहो ये नरगिस को | + | अब अश्क पोंछ ले जाकर कहो ये नरगिस<ref>घने जंगल में खिलने वाला फूल</ref> को |
अगर तलाशे-नज़र है मेरे चमन तक आए | अगर तलाशे-नज़र है मेरे चमन तक आए | ||
पंक्ति 25: | पंक्ति 25: | ||
जो इश्क़ रूठ के बैठे तो इस तरह हो 'अना' | जो इश्क़ रूठ के बैठे तो इस तरह हो 'अना' | ||
+ | कि हुस्न आए मनाने तो सौ जतन तक आए | ||
</poem> | </poem> | ||
+ | {{KKMeaning}} |
02:00, 24 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
कभी वो शोख़ मेरे दिल की अंजुमन तक आए
मेरे ख़्याल से गुज़रे मेरे सुख़न<ref>कवित्व</ref> तक आए
जो आफ़ताब थे ऐसा हुआ तेरे आगे
तमाम नूर समेटा तो इक किरन तक आए
कहे हैं लोग कि मेरी ग़ज़ल के पैकर<ref>साँचा</ref> से
कभी कभार तेरी ख़ुशबू-ए-बदन तक आए
जो तू नहीं तो बता क्या हुआ है रात गए
मेरी रगों में तेरे लम्स<ref>स्पर्श</ref> की चुभन तक आए
अब अश्क पोंछ ले जाकर कहो ये नरगिस<ref>घने जंगल में खिलने वाला फूल</ref> को
अगर तलाशे-नज़र है मेरे चमन तक आए
तमाम रिश्ते भुलाकर मैं काट लूँगा इन्हें
अगर ये हाथ कभी मादरे-वतन तक आए
जो इश्क़ रूठ के बैठे तो इस तरह हो 'अना'
कि हुस्न आए मनाने तो सौ जतन तक आए
शब्दार्थ
<references/>